आधुनिकता क्या है adhunikta kya hai
आधुनिकता क्या है adhunikta kya hai
आधुनिकता क्या है? अगर इस शब्दार्थ पर विचार करें तो 'अधुना' या इस समय जो कुछ है, वह आधुनिक है पर आधुनिक का यही अर्थ नहीं है। हम बराबर देखते आ रहे हैं कि कुछ बातें इस समय भी ऐसी हैं जो आधुनिक नहीं है, बल्कि मध्यकालीन हैं। सभी भावों के मूल में कुछ पुराने संस्कार और नए अनुभव होते हैं यह समझना गलत है कि किसी देश के मनुष्य सदा या सर्वदा किसी विचार या आचार को एक ही समान मूल्य देते आए हैं। पिछली शताब्दी में हमारे देश वासियों ने अपने अनेक पुराने संस्कारों को भुला दिया है और बचे संस्कारों के साथ नए अनुभवों को मिलाकर नवीन मूल्यों की कल्पना की है। वैज्ञानिक तथ्यों के परिचय से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों के दबाव और आधुनिक शिक्षा की मानवतावादी दृष्टि के बहुल प्रचार से हमारी पुरानी मान्यताओं में बहुत अंतर आ गया है। अगर हम उदाहरण के तौर पर साहित्य को ले लें तो आज से दो सौ वर्ष पहले का सहृदय साहित्य में जिन बातों को बहुत आवश्यक माना जाता था उनमें से कई अब उपेक्षणीय (नगण्य) हो गई हैं और जिन बातों को वह त्याज्य (बेकार) समझता था, उनमें से कई अब उतनी अस्पृश्य नहीं मानी जातीं। आज से दो सौ वर्ष पहले के सहृदय को उस प्रकार के दुःखान्त नाटकों की रचना अनुचित जान पड़ती थी, जिनके कारण यवन (ग्रीक/ग्रीक भाषा/यूनानी भाषा) साहित्य इतना महिमामंडित (गौरवान्वित) समझा जाता है और जिन्हें लिखकर शेक्सपियर संसार के अप्रतिम (लाजवाब) नाटककार बन गए हैं उन दिनों कर्म फल प्राप्ति के अवश्यम्भाविता (अतिआवस्यक) और पुनर्जन्म में विश्वास इतने दृढ़ भाव से बध्दमूल (अर्थात खराब कह सकते हैं) थे कि संसार के सामंजस्य व्यवस्था में किसी और सामंजस्य की बात सोचना एकदम अनुचित जान पड़ता था; परंतु अब वह विश्वास शिथिल होता जा रहा है और मनुष्य के ऐसे जीवन को सुखी और सफल बनाने की अभिलाषा प्रबल हो गई है। समाज के निचले स्तर में जन्म होना और किसी पुराने पाप का फल अर्थात घृणास्पद नहीं माना जाता, बल्कि मनुष्य के विकृत समाज व्यवस्था का परिणाम अर्थात सहानुभूतियोग्य माना जाने लगा है। इस प्रकार के परिवर्तन एक या दो नहीं बल्कि अनेक हुए हैं और इन सबके परिणाम स्वरूप सिर्फ हमारे प्रकाशन भंगिमा (रीति/मुद्रा) में ही अंतर नहीं आया है बल्कि उसके उपभोग या ग्रहण के तौर-तरीकों में भी फर्क पड़ गया है। साहित्य के जिज्ञासु को इन परिवर्तित और परिवर्तमान (वर्तमान/मौजूदा/सामयिक) मूल्यों की ठीक-ठक जानकारी प्राप्त करके ही हम यह सोच सकते हैं कि परिस्थितियों के दबाव से जो परिवर्तन हुए हैं, उनमें कितना अपरिहार्य (अनिवार्य) है, कितना अवांछनीय (असमीचीन/अनुपयुक्त/अकार्योचित/असमायोजित) है और कितना ऐसा है, जिसे प्रयत्न करके वांछनीय (आकर्षक) बनाया जा सकता है।
......................
Comments
Post a Comment
कृपया किसी भी प्रकार की अपमानजनक टिप्पणी या प्रतिबंधित और अभद्र लिंक साझा न करें।
(Please do not share any kind of derogatory remarks or banned and abusive links.)