पावलव — सम्बध्द प्रतिक्रिया का सिद्धांत
पावलव — सम्बध्द प्रतिक्रिया का सिद्धांत
इसे अनुक्रिया अनुबंधन का सिद्धांत भी कहते हैं।
सम्बध्द प्रतिक्रिया का सिद्धांत शरीर विज्ञान (Physiological Theory) सिद्धांत है।
इस सिद्धांत का सार — सम्बध्द सहज से क्रिया में कार्य के प्रति स्वाभाविक उत्तेजक के स्थान पर एक प्रभावहीन उत्तेजक होता है जो स्वभाविक उत्तेजक से संबंधित किए जाने के कारण प्रभाव पूर्ण हो जाता है।
पावलव का प्रयोग — इन्होंने कुत्ते पर प्रयोग किया। सम्बध्द प्रतिक्रिया सिद्धांत के प्रतिपादक व्यवहारवादी हैं। सबसे पहले रूसी विद्वान पावलव ने शारीरिक प्रतिक्रियाओं को उत्तेजना से सम्बध्द करने का विचार उपस्थित किया। उसने सम्बध्द प्रतिक्रिया के सिद्धांत की सत्यता जानने के लिए प्रयोग किया।
यह प्रयोग इस प्रकार है — पावलाव ने प्रयोग के लिए एक कुत्ता लिया और एक निश्चित समय पर भोजन दिया भोजन देने से पहले उन्होंने घंटी बजाई फिर भोजन दिया; या कह सकते हैं कि भोजन देने के साथ-साथ घंटी भी बजाई और फिर इसी तरीके से नित्य प्रतिदिन भोजन के साथ-साथ घंटी बजाने का कार्य करते रहे। यह स्वाभाविक ही था कि भोजन को देखकर कुत्ते के मुंह में लार आ जाती थी। लार आना एक स्वाभाविक क्रिया थी। उसके पश्चात पावलाव ने कुत्ते को भोजन नहीं दिया उसने केवल घंटी बजाई ऐसी स्थिति में भी कुत्ते के मुंह से लार टपकने लगती थी। यह एक स्वाभाविक क्रिया थी इसका कारण यह था कि कुत्ते ने घंटी बजने से सीख लिया था कि अब भोजन मिलेगा।
इस सिद्धांत को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है —
1- सीखने से पहले की स्थिति
स्वभाविक उत्तेजक — भोजन
स्वभाविक क्रिया — लार का टपकना।
2 - सीखने के पश्चात की स्थिति
अस्वाभाविक उत्तेजक — घंटी का बजना
स्वाभाविक क्रिया — लार का टपकना।
सम्बध्द प्रतिक्रिया सिद्धांत के गुण — इस सिद्धांत के गुण इस प्रकार हैं —
- यह सिद्धांत सीखने की स्वभाविक विधि बताता है।
- यह सिद्धांत बालकों को अनेक क्रियाओं तथा उनके असामान्य व्यवहार की व्याख्या करता है।
- यह सिद्धांत यह सिखाता है कि बालक वातावरण से सामंजस्य कैसे स्थापित कर सकते हैं।
- यह सिद्धांत इन विषयों की शिक्षा के लिए उपयोगी है जिसमें चिंतन की आवश्यकता नहीं होती।
- कुत्ते के समान बालक तथा वयस्क भी सम्बध्द सहज क्रिया के सिद्धांत से सीखते हैं।
स्किनर का कथन है कि — सम्बध्द सहज क्रिया एक आधारभूत सिद्धांत है जिस पर सीखना निर्भर करता है।
सम्बध्द प्रत्यावर्तन द्वारा सीखने पर प्रभाव डालने वाले कारक — सम्बध्द प्रत्यावर्तन द्वारा सीखने की क्रिया कुछ कारकों पर आधारित होती है यही कारण उसके सीखने पर नियंत्रण भी रखते हैं; यह कारक हैं —
1 - प्रेरणा — किसी पशु या व्यक्ति में संबंध प्रत्यावर्तन द्वारा कार्य करने की आदत पड़ने पर प्रेरणा का सबसे प्रमुख स्थान है क्योंकि प्राणी अपनी आवश्यकताओं से प्रेरित होकर अस्वाभाविक उत्तेजना के साथ संबंध स्थापित कर लेता है। पावलव ने जिस कुत्ते पर प्रयोग किया वह भूखा था घंटी बजते ही उसे शीघ्र भोजन मिलता था जिससे वह अपनी भूख मिटा लेता था। इसलिए वह घंटी की आवाज से ही लार टपकाने की क्रिया करने लगता था। यदि वह भूख की अवस्था में नहीं होता तो भोजन देखकर और बाद में घंटी की आवाज सुनकर लार टपकाने की क्रिया को न सीख पाता। इस प्रकार संबंध प्रत्यावर्तन के निर्माण में प्रेरणा का बहुत प्रभाव पड़ता है।
2 - आशा अथवा प्रतीक्षा — संबंध प्रत्यावर्तन द्वारा सीखने की क्रिया में प्रभाव डालने वाला दूसरा तत्व है। आशा या प्रतीक्षा पावलव के कुत्ते को यह आशा रहती थी कि घंटी बजते ही भोजन मिलेगा और इस वजह से कुत्ता लार टपकने की क्रिया प्रारंभ कर देता था। अर्थात अस्वाभाविक उत्तेजना (भोजन) के समान अस्वाभाविक उत्तेजना (घंटी) के प्रति स्वाभाविक व्यवहार प्रकट करने लगता था। इस प्रकार आशा या प्रतीक्षा के कारण अस्वाभाविक उत्तेजना का संबंध स्वभाविक उत्तेजना से हो जाता है अर्थात संबंध प्रत्यावर्तन की स्थापना हो जाती है।
3 - समय कि नजदीकता — संबंध प्रत्यावर्तन द्वारा सीखने की क्रिया पर प्रभाव डालने वाला एक अन्य महत्वपूर्ण तत्व है। समय की नजदीकता संबंध प्रत्यावर्तन की क्रिया के लिए अस्वाभाविक उत्तेजना के बाद 2 – 10 सेकंड के अंदर स्वभाविक उत्तेजना सीखने वाले के सम्मुख प्रस्तुत कर देना चाहिए नहीं तो दोनों प्रकार की उत्तेजना में संबंध स्थापित नहीं हो सकेगा।
4 - पुनरावृति — संबंध प्रत्यावर्तन पर प्रभाव डालने वाला चौथा तत्व पुनरावृत्ति है। स्वभाविक उत्तेजना को स्वाभाविक उत्तेजना के साथ एक बार नहीं बल्कि बार-बार एक ही साथ उपस्थित करने से प्रयोग अस्वाभाविक उत्तेजना का स्वभाविक उत्तेजना के साथ संबंध स्थापित करता है जिसके परिणाम स्वरूप वह अस्वाभाविक उत्तेजना के प्रति स्वाभाविक उत्तेजना की तरह प्रतिक्रिया करना सीख लेता है इस प्रकार संबंध प्रत्यवर्तन के लिए पुनरावृत्ति की अति आवश्यक है।
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